यह पुरस्कार साहित्य, मेडिसिन, इकॉनमिक्स, शांति, भौतिकी, रसायन विज्ञान विषयों में हर वर्ष सर्वोत्तम व्यक्ति/व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है।
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सितम्बर आते कास फूल अपने धवल हाथ हिला-हिला कर झूमने लगता है। संकेत है, त्योहारों का मौसम आ गया। दशहरा आने वाला है, दुर्गा पूजा की तैयारी शुरु कर दी जाए। और इसी समय विश्व साहित्य प्रेमियों का दिल गाने लगता है- ‘धीरे-धीरे मचल ऐ दिल-ए बेकरार, कोई आता है।’ मगर दिल कहां मानता है, वह जोर-जोर से धड़कता है, उसे आने वाले का बेसब्री से इंतजार होता है। वह जानना चाहता है कि इस वर्ष साहित्य का नोबेल पुरस्कार किसे प्राप्त होगा। 6-7 अक्टूबर से नोबेल पुरस्कारों की घोषणा होने लगती है।
यह पुरस्कार साहित्य, मेडिसिन, इकॉनमिक्स, शांति, भौतिकी, रसायन विज्ञान विषयों में हर वर्ष सर्वोत्तम व्यक्ति/व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है। हम जैसे केवल और केवल साहित्य के नोबेल पर आंख गड़ाए रहते हैं। सांस रोक कर अनाउंसमेंट का इंतजार करते हैं।
वैसे तो भविष्य किसने देखा है, मगर आदमी का मन सदा आगत में छलांग लगाता रहता है। वह अनुमान लगाता है और भविष्यवाणी करता है। नोबेल के संबंध में यह और भी कठिन है, क्योंकि कई अन्य पुरस्कारों की भाँति यहाँ न तो लॉन्ग लिस्ट बनती है और न ही शॉर्ट लिस्ट जारी की जाती है। इतना ही नहीं इसमें नामांकित होने वाले लोगों का नाम नोबेल समिति 50 सालों के बाद ही खोलती है।
फिर भी साहित्य प्रेमी संभावित लेखकों की सूची बनाते हैं। न केवल अपने पसंददीदा लेखकों की लिस्ट तैयार करते हैं, उनके पक्ष में तगड़े तर्क देते हैं, बाकायदा उनके नाम पर सट्टेबाजी होती है, बोलियां लगती हैं। यह दीगर है कि इन सबको धता बताते हुए कभी-कभी नोबेल समिति ऐसे नाम पर मुहर लगाती है कि सब चकित रह जाते हैं और कई बार पूछते हैं, ‘हेरटा मूलर, हू?’ और जब गायक बॉब डिलेन को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला तो सबने चकित हो कर कहा, ‘अच्छा वह साहित्यकार भी हैं..!’
कई बार समिति के सदस्यों में मतभेद होता है, एल्फ़्रिड येलेनिक के समय तो एक सदस्य ने गुस्से में समिति से इस्तीफ़ा दे दिया था।
कुछ रचनाकारों का नाम साल-दर-साल नोबेल के लिए उछलता रहता है, जैसे फिलिप रॉथ। वे हर साल पुरस्कार की घोषणा के पहले नया कोट-टाई पहन कर अपने नाम का इंतजार करते हैं। यह एक मखौल बन गया। वे उम्मीद छोड़ चुके थे और अंतत: 85 साल की उम्र में 2018 को वे गुजर गए। यही हाल मिलान कुंडेरा का हुआ। एक साल हम भारतीय कलेजा थाम कर घोषणा का इंतजार कर रहे थे क्योंकि उस साल उदय प्रकाश को नोबेल मिलने की संभावना लगाई जा रही थी। मार्ग्रेट एटवुड, जॉयस कैरोल ओट्स, गूगी वा थिओंग’ओ, रोहिंग्टन मिस्त्री, ए. एस. ब्याट जैसे कई दूसरे नाम साल-दर-साल उछलते हैं।
कई बेतुके तर्क भी इन अनुमानों के पीछे काम करते हैं, जैसे कई सालों से किसी अश्वेत अफ़्रीकी को नोबेल नहीं मिला है, कई साल हो गए किसी कवि को यह पुरस्कार नहीं दिया गया है आदि, आदि। कुछ लोग रूस को यह सम्मान दिलवा रहे होते हैं, तो कुछ लोग ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में वोट दे रहे होते हैं, कुछ का कहना होता है कि इस साल कोरिया को किसी हाल में नहीं मिलेगा यह तो चीन को मिलेगा।