नलखेड़ा। कोई भी धर्म स्थल भक्तों की आस्था का केन्द्र रहता है, जहाँ भक्त विश्वास और समर्पण के साथ अपना शीश नवाते है। लेकिन शासन की नीति व जिम्मेदारों के कारण ये आस्था के केंद्र व्यवसायिक केंद्र में तब्दील हो रहे है। शासन का कानून भी कहता है कि आस्था के इन केंद्रों पर धार्मिक मान्यताओं व परम्पराओं के अनुसार वहाँ की व्यवस्थाएं होना चाहिए लेकिन धीरे धीरे आस्था के इन केंद्र पर धार्मिक मान्यताओं को दरकिनार व्यवस्थाएं की जा रही है फिर चाहे इससे भक्तों की आस्थाएं ही आहत क्यो नही हो। ऐसे ही एक माँ बगलामुखी मंदिर की समिति में वर्षो से अशासकीय सदस्यों की नियुक्ति नही की गई। शासकीय सेवकों द्वारा ही यहाँ की व्यवस्थाएं सम्हाली जा रही है।

मामला स्थानीय माँ बगलामुखी मंदिर का है जोकि शासन के अधीन होकर मध्यप्रदेश विनिर्दिष्ट मंदिर विधेयक 2019 के तहत यहाँ की सम्पूर्ण व्यवस्था की जिम्मेदारी विधेयक के तहत गठित समिति की होती है। इस समिति का अध्यक्ष या तो कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा नामित शासकीय अधिकारी होता है, एक सचिव एवं सदस्य के रूप में पुलिस अधीक्षक, स्थानीय निकाय के सीएमओ, मंदिर का एक पुजारी,कम से कम द्वितीय श्रेणी के चार अधिकारी, शासन द्वारा नियुक्त दो अशासकीय सदस्य एवं शासन द्वारा नियुक्त विशेष आमंत्रित सदस्य होते है।
विधेयक में स्पष्ट उल्लेख है कि इस समिति का कर्तव्य होगा कि वह मंदिर के धार्मिक कृत्यों व रूढ़ियों के अनुसार संचालन करें।
अब सबसे बड़ी विसंगति तो यह है कि मंदिर विधेयक के अधीन तो हो गया लेकिन इसकी व्यवस्थाओं के लिए गठित की जाने वाली समिति में वर्षो से अशासकीय सदस्यों की नियुक्ति नही की गई है। ऐसे में यहाँ की व्यवस्थाएं शासकीय सेवकों द्वारा ही की जा रही है।
समय समय पर शासकीय सेवक बदलते रहते है ऐसे में समिति के पदाधिकारी व सदस्य भी बदलते रहते है क्योंकि ये पदेन होते है। जिन अधिकारियों को लंबे समय तक यहाँ पदस्थ रहने का मौका मिल जाता है वे तो मंदिर से संबंधित धार्मिक कृत्यों व रूढ़ियों से परिचित हो जाते है लेकिन जो अल्प समय के लिए पदस्थ होते है उन्हें यहाँ की धार्मिक परम्पराओं व कृत्यों को समझने का समय नही मिल पाता है।

इसके अतिरिक्त सभी अधिकारी एक समान कार्यशैली अथवा मनःस्थिति वाले नही होते है, कोई रुचि लेकर मंदिर की व्यवस्था सुचारू रखने का प्रयास करते है और कोई मात्र औपचारिक रूप से अपना कार्य करते रहते है।
अब यहाँ समिति में अशासकीय सदस्यों की कमी खलती है क्योंकि जो भी अशासकीय सदस्य नियुक्त होते है वे यहाँ की धार्मिक परम्पराओं, धार्मिक मान्यताओं के जानकार होते है। ऐसे में कही धार्मिक मान्यताओं का पालन नही हो रहा होता है तो ये सदस्य उसका पालन करवा सकते है।
इसी प्रकार का एक मामला इन दिनों बेहद सुर्खियों में है मंदिर पर यज्ञशाला में धार्मिक मान्यताओं के विपरीत खंडित हवन कुंडों पर हवन अनुष्ठान करवाने का। यह उचित है कि मंदिर में व्यवस्थाएं जुटाने के लिए धन की आवश्यकता होती है जिसके लिए यदि समिति हवन कुंड का किराया वसूल रही है तो वह ठीक है लेकिन जिस कार्य के लिए वह किराया वसूल रही है वह कार्य ही धार्मिक मान्यता के अनुसार सम्पादित नही करवा पा रही थी तो यह कृत्य निश्चित रूप से एक व्यवसायिक श्रेणी में माना जायेगा। क्योंकि व्यवसायी यह सोचकर अपना व्यवसाय करता है कि उसे अधिक से अधिक बचत हो और यही सोच वर्तमान समय में मंदिर प्रबंध समिति की सामने आ रही है।
खंडित हवन कुंड पर हवन अनुष्ठान करवाने के मामले को लेकर समाचार पत्र में समाचार प्रकाशन के बाद मंदिर समिति द्वारा खंडित हवन कुंड को दुरस्त करने का कार्य प्रारंभ किया गया है। अब यहां सवाल उठता है कि यदि समाचार पत्र इस मामले में अपनी आवाज मुखर नहीं करते तो शायद भक्तों को खंडित हवन कुंड पर ही हवन – अनुष्ठान करना पड़ते।
इसी प्रकार मंदिर परिसर में समुचित विद्युत व्यवस्था नही करना, कम कीमत के हल्की क्वालिटी के सीसीटीवी कैमरे लगाना जिसमे स्पष्ट फ़ोटो भी दिखाई नही देते है, 10 माह पूर्व हैंडओवर कर चुके तीर्थ यात्री सेवा सदन एवं तीर्थ यात्री विश्राम गृह को आम भक्तों की सुविधा के लिए नही खोलना जैसे कार्य इसी श्रेणी में रखे जा सकते है।
मंदिर प्रबंध समिति को मात्र दान, चढ़ावा या हवन कुंड के किराए तक सीमित नही रहते हुवे, भक्तों के लिए समुचित सुविधाएं जुटाने, उनकी सुरक्षा के इंतजाम करने, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कर्मकांड सम्पादित करवाने पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। अन्यथा यह मंदिर आस्था के केंद्र के स्थान पर व्यवसायिक केंद्र बन जायेगा।

