सेना कम होने का अब भाजपा को सताने लगा है डर, भितरघात के कारण वर्ष 2018 में हार गई थी भाजपा
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मालवा ख़बर @ राकेश बिकुन्दीया, सुसनेर।
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनो ही दलो के भितरघात कमजोर कडी साबित हो रहा है। राजनेतिक विशेषज्ञो की माने तो इसी भितरघात ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी को तीसरे नम्बर पर पहुंचा दिया था। ऐसा ही नजारा इस चुनाव में भी देखने को मिल रहा है। इस चुनाव में भाजपा के अंदर शुरू हुई बगावत की आग शांत होने का नाम ही नही ले रही है। जैसे-जैसे मतदान की तारिख नजदीक आती जा रही है वेसे-वेसे भाजपा की सेना कम होती जा रही है। हर रोज भाजपा के कार्यकर्ता पार्टी की उपेक्षा का शिकार होकर कांग्रेस ज्वाईन कर रहे है। दरअसल इस बगावत की शुरूआत भाजपा के पूर्व नगर परिषद उपाध्यक्ष रह चुके राणा चितरंजन सिंह ने प्रत्याशी की घोषणा से पूर्व ही कांग्रेस ज्वाईन करके की। उसके बाद से भाजपाईयो के द्वारा पार्टी छोड कांग्रेस ज्वाईन करने का सिलसिला शुरू हो गया। अभी तक कई कार्यकर्ता पाटी की नीतियों व उपेक्षा का शिकार होकर कांग्रेस में जा चुके है। हालहि में भाजपा के पूर्व विधायक बद्रीलाल सोनी के दो बेटे यशवंत सोनी और दीपक सोनी के अलावा भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के मंडल उपाध्यक्ष वलीमोहम्मद ने कांग्रेस की सदस्यता ली है। उधर राणा चितरंजनसिंह भाजपा प्रत्याशी राणा विक्रमसिंह के पारिवारिक भाई है जिनके कांग्रेस में जाने की चर्चा अभी तक चल रही है इनके साथ ही बडी संख्या में अन्य समाजसेवी व भाजपा एवं राणा विक्रमसिंह के कई समर्थको ने कांग्रेस प्रत्याशी भेरोसिंह परिहार बापू के नेतृत्व में भोपाल पहुंचकर पूर्व सीएम दिग्विजयसिंह के जरीए कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है। उसके बाद से धीरे-धीरे भाजपा कार्यकर्ता कांग्रेस ज्वाईन करते जा रहे है। इससे अब भाजपा को अपनी सेना कम होने का डर सताने लगा है।
राणा के करीबी कार्यकर्ता अब बापू के साथ
इस चुनाव में अपने पराए और पराए अपने हो रहे है। ऐसा हर दिन चुनावी मोसम में देखने को मिल रहा है। भाजपा प्रत्याशी राणा विक्रमसिंह के व्यक्तिगण कार्यकर्ता जो पीढियो से उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहे थे। उन्होने भी राणा की उपेक्षा का शिकार होकर अब कांग्रेस ज्वाईन कर ली है और कांग्रेस प्रत्याशी भैरोसिंह परिहार बापू के साथ कार्य कर रहे है। इनमें सुनिल बांगड डॉन, कृष्णमुरारी जाजु, प्रकाश शर्मा, दिनेश सेठी व अन्य कार्यकर्ता शामिल है। जो कभी राणा की चुनावी रणनीति तैयार किया करते थे। अब वे बापू के वोट बैंक बढाने का प्रयास कर रहे है।
भितरघात न ले डुबे भाजपा का गढ़
वेसे तो भाजपा-कांग्रेस दोनो ही प्रमुख राजनेतिक दलो में भितरघात हावी है। पाटी का दायित्व लेकर कुछ कार्यकर्ता अपने ही प्रत्याशीयों को निपटाने का प्रयास कर रहे है। कुछ जो नाराज थे वे मान गए है लेकिन अधिकांश चुनावी जनसम्पर्क से गायब है तो कुछ ऐक आलाकमान की नजर में एकता दिखाने के लिए कभी-कभी अपना चेहरा दिखा जाते है। इसी भितरघात के कारण भाजपा को वर्ष 2018 के चुनाव में हार का सामना करना पडा था और निर्दलीय के तौर पर राणा विक्रमसिंह ने रिकॉर्डतोड मतो से जीत हासिल की थी। राजनितिक विशेषज्ञो की माने तो यह भितरघात इस चुनाव में भाजपा को काफी नुकसान पहुंचा सकता है।