सुसनेर। भक्त पर जब भगवान की कृपा होती है तो वह भव सागर से भी पार हो जाता है, इसको आप नानीबाई के मायरे की कथा से आसानी से समझ सकते है। जन्म से गुंगे बहरे नरसिंह मेहता जी को जब बाल्य अवस्था में संत से आर्शीवाद मिलता है तो वे राधा-कृष्ण बोलने लगते है। नरसिंहजी की दादी मंदिर जाती है तो एक सन्यासी संत मिल जाते है उनसे बोलती है मेरा पोता कुछ बोलता सुनता नहीं इसको ऐसा आर्शीवाद दे दो की यह बोलने लग जाए, सुनने लग जाए। उक्त विचार गत रात्रि को गुराडिया सोयत में श्री त्रिवेन्द्रम लोक कल्याण शिक्षण समिति व ग्रामवासियों के द्वारा आयोजित की जा रही नानीबाई के मायरे की कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बाेधित करते हुएं राजगढ ब्यावरा के कथावाचक सत्यनारायण सोनी ने व्यक्त किए।
उन्होने कथा में कहां की संत ने दादी से कहां की मैया तेरा पोता तो भाग्यवान है तेरे वंश का महापुरूष है, इतना कहने के बाद स्वामी जी ने अपने कमंडल से जल निकालकर नरसिंह पर छिडका और कानो में कहां बोलो बेटा राधा-कृष्ण। उसके बाद जन्म से गुंगे-बहरे नरसिंह मेहता राधा-कृष्ण बोलने लगे। उन्होने कहां कि नानीबाई की बेटी का ब्याह होता है तो नानीबाई के ससुराल वाले एक लम्बी चोडी वस्तुओं की सूची बनाकर नरसिंहजी के घर पर शादी के निमंत्रण के साथ भेज देते है। और उसी सूची में नीचे लिखा होता है यदी इन सब वस्तुओ का प्रबंध हो जाए तो ही मायरा लेकर आना नहीं तो मत आना। क्यों कि नरसिंह गरीब थे इसलिए सभी ने सोचा इतनी वस्तुएं होगी ही नही तो नरसिंह मायरा ही लेकर नहीं आएंगे। लेकिन नरसिंहजी तो भगवान के भक्त ठहरे टूटी-फूडी बैलगाडी, बूडे बैल और साथ में सोलह सुरया स्वामी को लेकर नानीबाई का मायरा भरने के लिए अंजार की और निकल पडे। पूरा समाज उनकी हंसी उडाता है कि देखो नरसिंह खाली बेलगाडी लेकर नानीबाई का मायरा भरने जा रहा है। लेकिन भक्त नरसिंह मेहता को अपने इष्ट प्रभु ठाकुरजी पर भरोसा होता है। उसी भरोसे के लिए सांवरिया सेठ ने कलयुग में 1616 ईस्वीं में नानीबाई का मायरा भरा था। कथा विश्राम पर ठाकुरजी की आरती कर प्रसादी वितरिति की गई। इस अवसर पर बडी संख्या में श्रृद्धालुजन उपस्थित रहे।