सुसनेर। भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई ज्योतिबा फुले एक ऐसा नाम है जो भारतीय इतिहास में महिलाओं और दलितों के उत्थान को लेकर स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका और समाज सेविका थी जिन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए उनके भीतर ज्ञान की अलख जगाने का एक सफल प्रयास किया। उक्त विचार स्थानीय फूल माली समाजज व फूलमाली श्योसल ग्रुप ने मालीपुरा में स्थित फूलमाली समाज की धर्मशाला में सावित्रीबाई फूले की जयंती के अवसर पर सम्बोंधित करते हुएं व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरूआत सावित्रीबाई फूले के चित्र पर पूजन कर माल्यार्पण करने के साथ की गई।
इस दोरान सभी वक्ताओ ने सावित्रीबाई के जीवन पर प्रकाश डालते हुएं कहां की जिस दौर में महिलाओं का पढ़ना पाप माना जाता था उस दौर में सावित्रीबाई फुले जैसी शिक्षिका और समाज सेविका ने जन्म लिया और दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के लिए शिक्षण संस्थानों के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिए। भारतीय समाज सुधार आंदोलनो के नेतृत्व में उनके योगदान को याद किया जाता है। सावित्रीबाई फुले ने दलित महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक दो नहीं बल्कि 18 बालिका विद्यालय खोलें।
दलित महिलाओं की शिक्षा में व्यापक क्रांति लाने के बाद सावित्रीबाई फुले ने एक समाज सेविका के तौर पर भी काम किया और अपने पति तथा महान समाज सेवक ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर समाज सुधारक आंदोलनों में हिस्सा लिया। इन्होंने छुआछूत, दहेज प्रथा, बाल विवाह, विधवा सती प्रथा जैसी अनेक कुरीतियों के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई और इनका विरोध किया। समाज सुधारक आंदोलनों और दलित महिलाओं की शिक्षण में उत्थान के लिए सावित्रीबाई फुले को सदैव याद किया जाता है। 3 जनवरी सावित्रीबाई फुले जयंती के दिन ही भारतवर्ष में इस पुण्य आत्मा का जन्म हुआ था। इस अवसर पर बड़ी सँख्या में समाजजन मौजूद रहें।