सुसनेर। आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होने के कार्यक्रम से पूरे भारत एवं विश्व मे मौजूद हिन्दू समाज अभिभूत है। वही इस मंदिर निर्माण के पूर्व गुलामी के ढांचे को गिराने के लिए जिन लोगो ने सन 1992 में अयोध्या जाकर कारसेवा की थी उन लोगो की खुशी का कोई पार नही है। वे रोमांचित ओर गौरवान्वित होकर अपने 1992 की कारसेवा के सौभाग्य के किस्से बताते है। ऐसे सुसनेर नगर से 1990 एवं 1992 की दो बार की कारसेवा में अयोध्या गए कारसेवक एवं लोकतंत्र सेनानी गोवर्धन शुक्ला ने अपने 6 दिसम्बर 1992 की कार सेवा के संस्मरण सुनाए। उनके पास आज भी 1992 की कारसेवा की प्रवेशिका सुरक्षित रखी है जिसे उन्होंने लेमिनेशन करवाकर आने वाली पीढ़ियों को बताने के लिए सुरक्षित रखा हुआ है। उस प्रवेशिका के साथ हमारे संवाददाता को अपनी कारसेवा के संस्मरण सुनाते हुए बताया कि में 1992 की कारसेवा में मेरे मीसाबंदी साथी रतनसिंह परमार एवं नगर के मेरे साथी कारसेवक रमेशचंद्र शर्मा बापू, चिंतामन राठौर सोयतकलां, लक्ष्मणसिंह कांवल, मांगीलाल सोनी, वेदप्रकाश भट्ट, दुलेसिंह सिसोदिया, हेमराज जायसवाल एवं टेकचंद गेहलोत सहित अनेक कारसेवकों के साथ 1992 को अयोध्या की कारसेवा में सुसनेर से बस द्वारा शाजापुर गए वहां रेलवे स्टेशन से सुबह साबरमती एक्सप्रेस से सीधे अयोध्या के लिए 2 दिसम्बर 1992 को निकले थे जहां हम लोग 3 दिसम्बर की शाम अयोध्या पहुँचे। जहां हम लोगो के ठहरने की व्यवस्था विहिप संगठन द्वारा वेदांती आश्रम में की गई थी। जहां हमारी दिनचर्या प्रातः सरयु नदी में स्नान कर जगह जगह भंडारे स्थापित थे वहां भोजन कर दिन भर जुलूस निकालते एवं दोपहर बाद रामकथा कुंज जो मेन कारसेवकों का मुख्यालय था एवं वही से कारसेवकों को मार्गदर्शन मिलता था जहां हमे विहिप अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल, आचार्य रामचंद्र परहन्सजी, आचार्य धर्मेंद्र, सत्यनारायण मौर्य, साध्वी ऋतुम्भरा एवं उमा भारती एवं दक्षिण सहित देश के अन्य प्रांतों के सन्तो एवं शंकराचार्य तथा विद्वानों के प्रवचन सुनने एवं मार्गदर्शन मिलता था। ये क्रम 5 दिसम्बर तक चला।
जिसमे चित्रकार एवं गायक सत्यनारायण मौर्य ने पूरी अयोध्या में चित्रकारी की थी एवं भजन गाकर माहौल बनाया। फिर 5 दिसंबर की शाम को हमे सूचना दी गयी कि कल 6 दिसंबर को कारसेवा होगी। तब हम कारसेवा करने का उत्साह इतना था कि हम 6 दिसम्बर को मेरे मित्र रमेशचंद्र बापू ओर में सुबह 4 बजे ही उठ गया। उठकर देखा तो मुझे तेज बुखार था। परन्तु कारसेवा का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए बुखार में ही सुबह 5 बजे सरयु नदी में डुबकी लगाकर नहा लिए। परंतु भगवान राम की ऐसी कृपा रही कि खराब मौसम और कोहरा होने तथा दिसंबर की कडाके की ठंड होने के बावजूद बुखार में नहाने के बाद भी हमे कुछ नही हुआ और बुखार गायब हो गया। हम खाते पीते सुबह 10 बजे कारसेवा स्थल पर पहुचे तो वहां मंच से अशोक सिंघल, महंत नृत्य गोपाल दास, लालकृष्ण आडवाणी, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, ऋतुम्भरा, उमा भारती, जयभानसिंह पवैया एवं विनय कटियार सम्बोधित करते हुए कारसेवकों को कंट्रोल करने के लिए आग्रह कर रहे थे कि हम कारसेवकों को सरयु नदी एक मुट्ठी रेत लाकर लक्ष्मण टीले में डालकर सांकेतिक कार सेवा करना है ये सुन सभी कारसेवक निराश हो गए और कहने लगे कि हम कोई सांकेतिक कारसेवा करने नही बल्कि बाबर की गुलामी का कलंक मिटाने आये है।
लाखो की संख्या में मौजूद कारसेवकों में से कुछ कारसेवक क्रोधित होकर 11 बजे तक एक ढांचे पर चढ़ गए और एक ढांचे को तोड़ना प्रारम्भ कर दिया। वहां चार पांच हज़ार महिला कारसेवक बहने भी थी। कही भगदड़ में उनको नुकसान नही पहुँचे इसीलिए साध्वी ऋतुम्भरा ने कारसेवकों को कंट्रोल करते हुए माईक से कहा कि हमारे बीच आपकी 5 हज़ार महिला कारसेवक बहने भी मौजूद है इनकी रक्षा भी हमे करना है आप सबसे हाथ जोड़कर निवेदन है कि आप सभी मेरे साथ 21 बार हनुमान चालीसा का पाठ करे। ऋतुम्भराजी का 21 बार हनुमान चालीसा का माइक से पाठ करवाने में गला बैठ गया परन्तु इससे लाखो की संख्या में जहां थे वही बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे जिससे महिला पुरुष कारसेवकों का भेद समाप्त होकर सभी लोग शांतिपूर्ण व्यवस्था से कारसेवा करने लगे एवं भगदड़ की स्थिति निर्मित नही हुई। पहला ढाचा दोपहर 2 बजे तक टूटा, फिर दूसरा 3 बजे ओर आखरी तीसरा ढांचा 4 बजे बजे बाद तक धराधायी हो गया। महंत नृत्य गोपाल दास जी ने अलाउंस किया कि अयोध्या आने का मार्ग चारो से वृक्ष डालकर बन्द किये जायें। तो बड़े बड़े वृक्ष जो जेसीबी से भी नही उठते ऐसे विशालकाय वृक्षों को कारसेवकों ने हाथों में ऊपर के ऊपर ऐसा सरकाया जैसे साक्षात बजरंगबली की ताकत उनमें समा गई हो। फिर तीनो ढांचों का मलबा को पास में खाई में डालने का आदेश हुआ तो ओढ़ने की शालों में मलवा भरकर कारसेवक डालने लगे। ढांचे के आसपास विशाल लोहे की पाईप एंगल जो जेसीबी से भी नही हिलते उनको कारसेवकों ने लहूलुहान होकर हटा दिए। 6 दिसम्बर की रात्रि को मालवा प्रान्त कारसेवकों की ड्यूटी थी कारसेवा की जिसका मुवावना अशोक सिंघल कर रहे थे तो खुदाई बहुत बड़ा घण्टाल, शिलालेख एवं राम दरबार सिंघासन सहित अन्य सामग्री निकली थी। जिनको राम कथा कुंज में राम मंदिर सबूत के लिए सुरक्षित रख दिया गया था। फिर सात दिसम्बर को प्रातः उठकर नित्य क्रिया ने निवृत होकर सभी कारसेवक बाकी मलवे को खाई में डालकर मैदान समतल कार्य कर रहे थे वो दोपहर में भोजन करने भंडारे में आ गए थे। इतने में रामकथा कुंज से एलाउंस हुआ कि जो कारसेवक जहां है वो सभी तत्काल जन्मभूमि स्थल पर पहुँचे मिलेट्री कब्जा करने जा रही है। तो वहां एक दस साल का बालक भोजन कर रहा था उसने भरी पत्तल वापिस रखकर जोश से कोरस गाता हुआ कि माँ तुम्हे पुकारती, पुकारती है माँ भारती। खून से तिलक करो, गोलियां आरती। ये गाते हुए जन्मभूमि की चल दिया। उस बालक के पीछे सभी कारसेवक भी यही लाइने दोहराते हुए सभी दिशाओं से जन्मभूमि स्थल पहुच गए। कारसेवकों का उत्साह और जोश देखकर कोई राम जन्मभूमि स्थल पर नही आया। सभी कारसेवक व्यवस्थित कारसेवा में लग गए। एवं उस स्थल को व्यवस्थित कर ऊंचाई के ओठला बनाकर एवं ओठले की सीढ़ियां बनाकर गुलाबी कपड़े से आसपास ढंक दिया। टेंट नुमा स्थल पर भगवान बैठाकर पूजा अर्चना शुरू कर दी। फिर हमें आदेश हुआ कि सभी कारसेवक अपने अपने स्थानों पर पहचाना चाहे तो पहुच सकते है कारसेवा सफल हो गयी है। 6 दिसम्बर को ढांचे के ढहने के बाद पूरी अयोध्या के महिला पुरुष एवं बच्चे सब सड़क पर आकर रात भर खुशी मनाई। रातभर दिए जलाए अपनी घरों में रोशनी कर मिठाई बांटी ओर खुशियां मनाई। पूरी अयोध्या 6 दिसम्बर को खुशी में नही सोई थी।
हम लोग 7 दिसम्बर की रात्रि को आदेश आने के बाद 12 बजे हम अयोध्या से कानपुर के लिए निकले, कानपुर से लखनऊ, लखनऊ से झांसी होते भोपाल के लिए निकले। रास्ते मे आने में सभी दूर कर्फ्यू लगा हुआ था। दो रात लगाकर सफर कर हम लोग भोपाल पहुँचे तो वहां दंगे हो रहे थे। हम भोपाल से सुबह उज्जैन 10 दिसम्बर को वापस पहुँचे। जहां रेलवे स्टेशन पर उज्जैन शहर में भी कर्फ्यू होने के कारण हमें संघ कार्यालय तक छोड़ने आये। कर्फ्यू में उज्जैन के लोगो को पता चला कि कारसेवक आये है तो वो हमारे लिए कर्फ्यू में चाय नाश्ता लेकर आये। फिर उज्जैन से विशेष बस डाक बंगला आगर आए। वहां उस समय के सुसनेर विधायक बद्रीलाल सोनी हमारे स्वागत के लिए कार्यकर्ताओ के साथ आये और स्वागत कर दो दो लोगो को मोटर साइकिल पर सुसनेर पहुँचाया गया।