महाशिवरात्रि विशेष- साल में एक बार तिल के सामन बढता है शिवलिंग, महाभारतकाल में पांडवो ने एक ही शिला से किया था पंच देहरिया मंदिर का निर्माण
मालवा खबर @ राकेश बिकुन्दिया, सुसनेर।
धन-धन भोले नाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में, तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में, उक्त भजन की यह पंक्तियां पंचदेहरीया महादेव मंदिर को चरीतार्थ कर रही है। यहां पर तीनो लोको को बस्ती में बसाने वाले महादेव स्वयं वीरान जंगल में पहाडियों के बीच विराजे है। जिनकी आराधना महाभारत काल में पांडवो ने की थी और कलयुग में श्रृद्धालु कर रहे है। महाकाल के शिवलिंग स्वरूप में पंचदेहरिया ( पंच देवलिया ) महादेव यहां विराजमान है। ऐसा कहा जाता है की हर साल तिल के समान यह शिवलिंग बढता है। जिस पहाडी पर यह विराजे है उसे विध्यांचल पर्वत श्रृंखला के नाम भी से भी जाना है। चुकी यहां पर पांच पांडव, पांच बिल्ब पत्र के पेड व पांच देव स्थापित है। इसलिए ग्रामीणो द्वारा इस मंदिर को पंचदेवलिया के नाम से भी पुकारा जाता है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य श्रृद्धालुओ को बरबस ही अपनी और खींच ले आता है। इस मंदिर और समीप मोजूद रहस्मयी गुफा से जुडे कई किस्से व कहानिया तथा किवंदिया आज भी प्रचलित है। पंडितो और पुजारियों के अनुसार इस मंदिर का उल्लेख शिवमहापुराण में भी मिलता है। यहीं से नलखेडा जाकर के पांडवो ने शक्तिपीठ मां बगलाखुमी की भी स्थापना की थी। आज महाशिवरात्रि के चलते एक दिवसीय मेले का आयोजन किया जाएगा। साथ ही कई धार्मिक अनुष्ठान व कार्यक्रम भी होंगे दुर-दराज से श्रृद्धालु यहां पर पहुंचकर के धर्मलाभ अर्जन करेंगे।
पांडव रूके थे यहां, भीम ने एक ही पत्थर से कर दिया था गुफा व मंदिर का निर्माण
दरअसल महाभारत काल में के दौरान पांडव यहा ठहरे थे। इसी दौरान भीम ने एक ही पत्थर को तराशकर उसके अंदर शिवलिंग के रूप में पंचदेहरीया महादेव की स्थापना की थी उसके बाद पांचो पंडावों ने अपनी माता कुंती के साथ मिलकर यहां पर शिव आराधना की थी। बडी शीलानुमा जिस पत्थर के अंदर मंदिर बना है वह आज भी मोजूद है। और इसी के अंदर भीम के द्वारा बनाई गुफा भी स्थित है जो मोजूदा समय में पुजारीयो के काम आ रही है। इसी कारण आज भी इस मंदिर को पांडावकालीन पंचदेहरीया महादेव मंदिर भी कहा जाता है। विध्यांचल पर्वत पर बसा यह मंदिर श्रृद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है।
गुफाएं आज भी रहस्मयी
मंदिर के समीप ही पांडवो ने यहा रहने के लिए कुछ गुफाएं भी बनाई थी। समय के साथ श्रृद्धालुओं की आस्था के अनुरूप मंदिर को नए स्वरूप में बदला गया है, वर्तमान में मंदिर के बाहरी हिस्से पर सीमेन्ट का प्लास्ट हो रहा है, किन्तु अंदर से देखने पर गर्मगृह व आसपास छोटी- छोटी गुफाएं एक ही पत्थर पर बनी हुई दिखाई देती है। यह मंदिर एक िवशाल लाल रंग के पत्थर के अंदर बना हुआ है, मंदिर के उपर का शिखर भी पत्थर की आकृति से बना हुआ है। भीम ने अपने बल पर एक ही पत्थर के अंदर इस मंदिर का निर्माण किया था। इस मंदिर का उल्लेख भी शिवपुराण में भी मिलता है। कहां जाता है कि मंदिर के समीप एक और पहाडी पर बडी गुफा आज भी मोजूद है जिसका मार्ग उज्जैन तक जाता है। प्राचीनकाल में साधु संत इस गुफा मार्ग के जरीए उज्जैन के महाकुंभ में जाते है जिसकी दुरी काफी कम है। किन्तु अब यह बात सिर्फ रहस्य बनी हुई है। इस गुफा में कोई जाने को संघर्ष नहीं करता।
संतों ने साधना कर बताया इस जगह का महत्व
वर्तमान में यहां 35 गांव के लोग जुड़े हैं। बड़ी बात ये है कि यहां आपराधिक प्रवृत्ति बहुत कम हो गई है। पुजारी ओमप्रकाश शर्मा की उनका परिवार कई वर्षो से बाबा की सेवा कर रहा है। वे यहां महामृत्युंजय का जाप और अनुष्ठान करते है। चित्रकूट के परम हंस आश्रम सती अनुसुईया से कुछ साल पहले शिवरामामंदजी महाराज और स्वामी दयानंद सरस्वती जी महाराज आए। वे जब यहां साधना करने बैठे तो कुछ देर बाद ही ध्यान से उठकर कहा कि पंडित जी यहां पर हमें बहुत अच्छा टॉवर मिल रहा है। साधना का नेटवर्क बहुत अच्छा है। इसके बाद उन्होंने यहां भी अपने आश्रम की एक शाखा का निर्माण किया है। जो आज भी चल रही है।
महाकाल के स्वरूप में है शिवलिंग का स्वरूप
इस मंदिर में विराजित शिवलिंग उज्जैन के महाकांलेश्वर ज्योर्तिलिंग के जैसा ही दिखाई देता है। इसमें नीचे की और पीतल का कवच चढा हुआ है तो शिवलिंग की आकृति भी काफी बडी है। ऐसी मान्यता है कि प्रति वर्ष यह शिवलिंग तील के समान बढता है।
घटोत्कछ की जन्म स्थली है यह मंदिर
पंचदेहरिया महादेव मंदिर घटोत्कछ की जन्म स्थली है। कहां जाता है जब पाण्डु पुत्र दुर्योधन के लाक्षागृह से बचकर निकल गए थे, तब वे ब्राहम्ण कुम्हारों के रूप में इस क्षेत्र में गमन कर रहे थे। तब भीम ने राक्षसनी हिडम्बा से विवाह किया था। उसके पुत्र का नाम घटोत्कछ था। क्षेत्रिय साहित्यकार डॉक्टर रामप्रताप भावसार सुसनेरी के अनुसार मंदिर के समीप एक गुफा में हिडिम्ब नामक राक्षस अपनी बहन हिडिम्बा के साथ रहता था। यहां भीम ने उसका वध किया था। उसके बाद उसकी बहन हिडिम्बा ने भीम से शादी की। उसके बाद उनकी संतान हुई िजसके सिर पर बाल नहीं हाेने के कारण उसका नाम घटोत्कछ रखा गया। और इन्ही घटोत्कछ की संतान बरबरीक है। जो कलयुग में खाटु श्याम के नाम से विश्व विख्यात है।
देश विदेश से भी आते है भक्त
जब अपनी मनोकामना पुरी हो तो यहा भक्त देश विदेश से भी दोडे चले आते है गत श्रावणमास के दौरान अपनी मन्नत पुरी होने पर विदेश के कुछ परिवारो ने यहां पहुुंचकर अनुष्ठान करावाया है। इसके अलावा भारत के राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली आदि राज्यो से भी भक्त यहां पूजा- अर्चना व दर्शन करने हेतुं पहंुचते रहते है।
पूजा अर्चना की देखभाल के लिए 30 गांवो की है समिति
राजस्थान सीमा से जुडे इस प्राचीन मंदिर की देखभाल और पूजा अर्चना करने के लिए 30 गांवो की एक समिति है। समिति में एक गांव से पांच लोग प्रतिदिन मंदिर में रहकर पूजा अर्चना करते है। साथ ही समिति के द्वारा जनसहयोग से मंदिर परिसर में कई कार्य भी कराए जा चुके है। पहले यह क्षेत्र आपराधिक गतिविधियों का केन्द्र था। किन्तु समिति बन जाने के बाद प्रतिदिन लोगो की मोजुदगी के कारण आपराधिक गतिविधियाे पर भी रोक लग गई है।
महाशिवरात्रि पर हर वर्ष लगता है मेला
पाण्डवो द्वारा स्थापित इस मंदिर पर श्रृद्धालुओ के द्वारा प्राचीन काल से ही वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि पर एक दिवसीय मेले का आयोजन भी किया जाता है। यहां दुर-दुर से सांधु संत व श्रृद्धालु दर्शन करने आते है। श्रावण मास के दौरान कई श्रृद्धालु एवं संतगण यहा रूक कर तपस्या भी करते है।
कैसे पहुंचे यहां पर
यह मंदिर मध्यप्रदेश के आगर मालवा जिलें की सुसनेर तहसील के पंचदेहरिया गांव के समीप बना हुआ है। सुसनेर नगर से पश्चिम दिशा में 10 किलोमीटर दूर पहाडी पर यह स्थित है। उज्जैन-झालावाड राष्ट्रीय राजमार्ग 552 जी के जरीए आप सुसनेर और फिर मैना रोड से होते हुएं मंदिर तक पहुंच सकते है। यहां न सिर्फ आपको एकांत वातावरण की अनुभूति होती है। बल्की इस अद्भत शिवलिंग के दर्शन करने का भी सौभाग्य मिलता है।