सुसनेर। गुरु के प्रति श्रद्धा हो तो मिट्टी का द्रोणाचार्य भी एकलव्य जेसे व्यक्ति को श्रेष्ठ धनुर्धर बना सकता है। दक्षणा मांगने पर उसी सूत पुत्र एकलव्य ने अपना अंगूठा काट कर गुरू द्रोणाचार्य को भेंट कर दिया। क्यों कि शिष्य के पास सिर्फ समर्पण होता है वह तर्क नही करता। उक्त विचार रविवार की सुबह इंदौर-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित त्रिमूर्ति मंदिर में आचार्य प्रज्ञासागर जी महाराज ने उपस्थित श्रृद्धालुओ को सम्बोधित करते हुएं व्यक्त किये। उन्होने कहां की साधुओं का समागम सदैव सुसनेर वालो मिलता रहता है, क्योंकि ये मुख्य मार्ग पर है। यह मुख्य मार्ग मोक्ष मार्ग बनना चाहिए इसलिए हर साधु के साथ 2-4 लोग तो साथ जाना चाहिए। उन्होने भारत देश पर प्रकाश डालते हुएं कहां की हमारे भारत की भूमि धार्मिक भूमि है यहा कण-कण और मन-मन में भगवान बसते है, भगवान के बिना हमे जीना अच्छा नही लगता है। हर धर्म का अनुसरण हमारे देश मे होता है, मुरत कैसी भी हो, चाहे वो पाषाण की हो या मिट्टी की हो हमे तो सिर्फ उसमे भगवान दिखाई देता है। यहां पर दूर-दराज से आए श्रृद्धालुओ व नगरवासियो ने आचार्यश्री को श्रीफल भी भेंट किया। आचार्य श्री ने मंगलाचरण का महत्व भी सभी को बताया। और प्रवचन के दोरान पर्यावरण संरक्षण हेतु वृक्षारोपण करने की अपील भी की।
गुरू –शिष्य की महिमा का किया बखान
अपने प्रवचन में आचार्य प्रज्ञासागरजी महाराज ने रविवार को गुरू-शिष्य की महिमा का बखान किया और कहां की शिष्य आज्ञाकारी होता है उसे जो आदेश दिया जाता है वह अंतिम सांस तक उसका पालन करता है, शिष्य कठोर से कठोर दंड में उसे भी गुरु प्रसाद मानकर ग्रहण करता है। शिष्य के लिये आदेश होता है, भक्त के लिय उपदेश होता है। नारायण श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते है, लेकिन जब अर्जुन मानने को तेयार नही होता है तब नारायण को कहना पड़ा जैसी तुम्हारी इच्छा है वैसा करो। हमने तो रास्ता दिखा दिया अब उस मार्ग पर आगे बढ़ना या नह बढ़ना तुम्हारे ऊपर है। जब भक्त संसार से विरक्त होकर के गुरु चरणो का स्मरण कर लेता है तब नारायण कृष्ण गीता में लिखते है, है पार्थ तुम सभी को छोड़कर मेरी आज्ञा का पालन करो। उसके बाद शत्रुओं से लड़ने की शक्ति भी भगवान शिष्य को देते है। अंत में उन्होने कहां की गुरू के वचनो को प्रणाम मानिए और उसका अनुसरण करेंगे तो जीवन सफल हो जाएगा।