राकेश बिकुन्दिया, सुसनेर। श्रावण मास में कावड यात्रा को लेकर भगवान शिव को जल अर्पित करने की होड मची हुई है। इसी होड के चलते इस बार शिवशक्ति के बेनरतले 10 वें वर्ष में 11 और 17 अगस्त को दो कांवड व कलश यात्राएं निकाली जाना है। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है की जिस पंचदेहरिया (पंचदेवलिया) महादेव के लिए अपना वर्चस्व बढाने के लिए हर साल शिवशक्ति कावड-कलश यात्रा समिति सुसनेर क्षेत्र का महोत्सव बताकर इतना बडा आयोजन करती है। लेकिन इन 10 सालों में एक भी बार पंचदेहरीया को पर्यटन स्थल बनाने के लिए प्रयास नहीं किया। एक बार जब तत्कालीन जिला प्रभारी मंत्री और संस्कृति मंत्री सुरेन्द्र पटवा को ज्ञापन देने की नोबत आई थी तब भी कुछ युवाओ ने शिवशक्ति के बेनरतले ज्ञापन जरूर दिया था। लेकिन उसी ज्ञापन पर राजनीति करते हुएं कुछ नेताओ ने अपने लेटरपेड पर भी ज्ञापन सोपकर राजनीति जरूर चमकाई थी परन्तु उसके बाद भी पंचदेहरीया मंदिर को पर्यटन स्थल का दर्जा तो दूर की बात विकास तक नहीं हो सका।
मनकानमेश्वर महादेव मंदिर की भी नहीं ली सुध
सिंचाई विभाग का वह मनकामनेश्वर महादेव मंदिर जिस मंदिर की श्रीमनकामनेश्वर सेवा मंडल समिति के युवाओ ने जीतोड मेहनतर ककरे श्रमदान करके जनसहयोग से इस मंदिर को लोकप्रिय तो बनाया। लेकिन पिछले कुछ सालो से यह मंदिर राजनिक अखाडा बन गया है। राजनेता यहां आते है बडे-बडे धार्मिक आयोजन करवाते है और फिर मंदिर को सुना अपने ही हाल पर छोडकर चले जाते है। शिवशक्ति कावड व कलश यात्रा इस बार इसी मंदिर से 2 अलग-अलग कावड व कलश यात्राए तो निकाल रही है। लेकिन इस मंदिर के जीर्णोद्धार को लेकर शिवशक्ति ने प्रयास नहीं किया। 10 सालो में एक भी बार इस मंदिर में विकास कार्य करवाने या जीर्णोद्धार करवाने के लिए कोशश तक नहीं की। जबकि प्रथम यात्रा जब निकाली गई थी। तब यह घोषणा की गई थी की यात्रा में जो राशि बचेगी। वह शेष राशि मनकामनेश्वर मंदिर में िनर्माण कार्य के लिए दी जाएगी।
एक नजर में पंचदेहरीया का महत्व
मध्यप्रदेश के आगर मालवा जिलें के सुसनेर नगर से 10 किमी की दूरी पर पश्चिम दिशा में यह मंदिर विध्यांचल पर्वत श्रृंखला पर स्थित है। साहित्यकार डॉ रामप्रताप भावसार सुसनेरी के अनुसार पांडवो ने इस मंदिर की स्थापना की थी और भीम ने हिडिंबा नामक राक्षसनी से विवाह किया था जिनकी संतान घटोत्कछ है। भीम ने एक ही शिला को तराशकर शिवलिंग और मंदिर का निर्माण कर दिया था। ज्योतिषाचार्य पंडित बालाराम व्यास के अनुसार औरंगजेब ने भी इस मंदिर पर आक्रमण करते हुए शिवलिंग पर तलवार से वार किया था। यह निशान आज भी मोजूद है। और इसे शिवजी के तीसरे नेत्र के रूप में श्रृद्धालु पूजते है। चित्रकूट के साधु संतो ने यहां रहकर इस धार्मिक स्थल का प्रचार किया है। वे आश्रम भी संचालित कर रहे है। आसपास के गांवो की समितियां बनी हुई है भजन कीर्तन करती है। और इन्ही समितियों की बदोलत इस क्षेत्र में चोरी की घटनाओ पर भी विराम लगा है।