सुसनेर। रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। लेकिन माहेश्वरी समाज द्वारा यह त्योहार ऋषिपंचमी के दिन मनाने की परंपरा है। इस परंपरा का संबंध माहेश्वरी वंशोत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। इसमे माहेश्वरी गुरुओं के वंशज जिन्हें वर्तमान में छह न्याति समाज के नाम से जाना जाता है। यानि पारीक, दाधीच, सारस्वत, गौड़, गुर्जर गौड़, शिखवाल आदि एवं डीडु माहेश्वरी, धारी माहेश्वरी, धाटी माहेश्वरी, खंडेलवाल माहेश्वरी आदि माहेश्वरी समाज मे आते है।
समाज के स्थानिय सद्स्य प्रदीप बजाज ने बताया कि माहेश्वरी समाज की उत्तपत्ति भगवान शिव से हुई है। समाज के अभिषेक बजाज ने बताया कि माहेश्वरी समाज के लोग ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाते हैं। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और भाई-बहन एक-दूसरे की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं।
वही समाज के अशोक मोदानी के अनुसार ऋषि पंचमी को रक्षाबंधन के तौर पर मनाने की कुछ वजहें ये हैं कि मान्यता अनुसार जब माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी, तब माहेश्वरी समाज के गुरुओं ने इसी दिन रक्षासूत्र बांधा था. वर्तमान में, इसी रक्षासूत्र ने राखी का रूप ले लिया है। एक किंवदंती के मुताबिक, भगवान गणेश जी को सबसे पहले उनकी बहन ने ऋषि पंचमी के दिन ही राखी बांधी थी। ऋषि पंचमी पर रक्षाबंधन मनाने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। ऋषि पंचमी पर रक्षाबंधन मनाने के कुछ और तरीके है माहेश्वरी समाज के लोग सप्त ऋषियों की पूजा करते हैं और मीठे चावल का भोग लगाते हैं। घरों में दीवार पर ऋषियों के चित्र बनाकर पूजा-अर्चना की जाती है और कथा सुनी जाती है। ऋषि पंचमी के दिन उपवास किया जाता है।