इतिहास के पन्नो से….इस रामलीला की राशि से हर्षोल्लास से मनाया जाता था विजयादशमी का पर्व
राकेश बिकुन्दीया, सुसनेर। राम-राम सा…या जय रामजी की, ये शब्द उस समय सामान्य बोली में सबसे ज्यादा प्रचलित थे तब हर एक शख्स भगवान राम से जूडा था। जब दो या उससे अधिक लोग किसी आयोजन में या राह चलते भी मिल जाते थे तो वे राम-राम करते थे। उसके बाद सामान्य बातचीत की शुरूआत होती थी। लेकिन आज के आधुनिक युग में विडम्बना ऐसी है की आज की पीढी इनसे कोसो दूर है। लेकिन हमारे बडे बुजूर्ग राम-राम करने की परम्परा आज भी बखुबी निभा रहे है। आज की राम-राम से ही हम आज आपको सुसनेर में वर्षो पहले प्रचलित रही रामलील की यादे कुछ तस्वीरो के माध्यम से ताजा कर रहे है।
इन तस्वीरो को सहेज कर रखा है शहर के कवि घनश्याम गोयल ने जो उस समय रामलीला के मंचन के दोरान विभिन्न तरह के रोल अदा किया करते थे। सालो बाद हम आपको सुवानगर की इस प्राचीन रामलीला के दर्शन तस्वीरो के माध्यम करवाते हुएं उस समय के इस आयोजन के सूत्रधारो से भी अवगत करा रहे है। इन तस्वीरो में आपको भगवान राम का राजतिलक, वनवास यात्रा, सीताहरण, शबरी प्रसंग, लक्ष्मण मुर्छित, राम-भरत मिलाप जेसे कई प्रसंग दिखाई देंगे।
वर्ष 1979 में इन लोगो ने की थी रामलीला की शुरूआत
वर्ष 1979 में समाजसेवी स्वर्गीय ब्रजकिशोर दूत, स्वर्गीय शंभुदलाय हरदेनिया, स्वर्गीय ज्वालाप्रसाद शर्मा, स्वर्गीय फूंलचद मंत्री, स्वर्गीय बंशीलाल बर्तनवाला व धनशाम शर्मा राधारमण लड्डा, पेंटर रणछोड़ दास बैरागी ,अशोक कंठाली, रामचंद राठौर, खुशीलाल चोहान, प्रेम शर्मा, हरिनारायण गर्ग, गंगाराम टेलर, भेरूलाल परमार, अमोलकचंद वर्मा, रामरतन वर्मा, बालचंद प्रजापत, बालकृष्ण विश्वकर्मा आदि स्थानीय कलाकारो के द्वारा नगर के श्रीराम मंदिर धर्मशाला प्रांगण में रामलीला के मंचन की शुरूआत की गई थी।
इसका संचालन 1984 तक चला। 19 जुलाई 1984 में ब्रजकिशोर दूत की मृत्यु हो जाने के बाद इसका संचालन राधा रमण लड्डा के द्वारा किया गया। उसके बाद स्थानीय कलाकारो के द्वारा इस भव्य रामलीला मंचन में सुसनेर, सोयत, नलखेडा, मोडी आदि कई ग्रामीण अंचल से श्रृद्धालु धर्मलाभ लेने पहुंचते थे। जहां परम्परा अनुसार रामनवमीं के दिन से रामलीला का शुभारंभ होता था और विजयादशमी के दिन श्रीराम मंदिर धर्मशाला से शौभायात्रा निकालकर के दशहरा मैदान में रावण दहन होता था।
उसके बाद भगवान राम का राजतिलक इस रामलीला में किया जाता था। यह रामलीला राधारमण लड्डा के बाद पंडित वेदप्रकश भट्ट, डॉक्टर नवीनचन्द्र सेठी, रमेशचन्द्र बापू के नेतृत्व में संचालित होती रही। जो वर्ष 1990 तक चली। लेकिन उसके बाद टीवी सीरियल वाल्मिीकी रामायण का प्रसारण शुरू होने के कारण यह प्राचीन परम्परा विलुप्त हो गई।
उसके बाद रामलीला का मंचन तो बंद हो गया लेकिन विजयादशमी का पर्व जारी रहा। स्थानीय समाजसेवी कैलाश नारायण बजाज के समिति के सदस्यों के द्वारा इस दशहरा उत्सव पर्व को मनाने का बीडा उठाया गया जो आज दिनांक तक जारी है। वर्ष 2024 में 12 अक्टूबर को इस दशहरा उत्सव समिति के अध्यक्ष के रूप में मांगीलाल सोनी व अन्य समिति सदस्यो के नेतृत्व में विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा।