राकेश बिकुन्दीया, सुसनेर। मध्यप्रदेश और राजस्थान में दिगम्बर जैन समाज के कई तीर्थ स्थलों का निर्माण कराकर पंचकल्याणक महोत्सव सम्पन कराने वाले पूर्व जैन आचार्य दर्शन सागर जी महाराज ने अपने जीवन का अंतिम समय निकट जानकर जैन धर्म की परंम्परा अनुसार समाधि लेने के लिये सल्लेखना धारण कर चारो प्रकार के आहार का त्याग कर दिया है। दर्शन सागर जी के सल्लेखना की खबर फैलते ही सुसनेर में इंदौर कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित त्रिमूर्ति मन्दिर में समाजजनों का जमघट शुरू हो गया। शनिवार को सुबह से लेकर शाम तक सेकड़ो श्रद्धलु उनके दर्शन करने के लिये पहुंचे। नगर के अलावा आगर, उज्जैन, इंदौर, पिड़ावा, मोड़ी, नलखेड़ा से भी श्रद्धालु सुसनेर पहुंचे।
पूर्व आचार्य श्री प्रेरणा से ही बना है त्रिमूर्ति मंदिर
त्रिमूर्ति मंदिर के प्रेरणास्त्रोत पूर्व आचार्य श्री दर्शन सागर जी महाराज ने अपने जीवनकाल का अधिकांश समय सुसनेर में ही व्यतीत क़िया। उन्होंने 19 चातुर्मास नगर में किये। कई जगहों पर पंचकल्याणक महोत्सव करवाए। अनगिनत विधान के अलावा नवग्रह जिनालय इन्दोर व सेकड़ो जैन मन्दिरो का जीर्णोद्धार करवाया। पूर्व आचार्य श्री की प्रेरणा से ही सुसनेर में मुंबई के पोदनपुर में स्थित मंदिर कि तर्ज पर त्रिमूर्ति मंदिर का निर्माण कराया गया। भारत में सबसे पहले आचार्य श्री ने 365 दिनों का अखंड भक्तामर पाठ भी सुसनेर में करवाया। धर्म केसरी, अचल तीर्थ प्रेणता और उपसर्ग विजेता जैसी कई उपाधियां भी जैन धर्म के साधु संतों व माताजी के द्वारा इन्हें दी गई।
सल्लेखना का अर्थ-
सल्लेखना मृत्यु को निकट जानकर अपनाये जाने वाली एक जैन प्रथा है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है। दिगम्बर जैन शास्त्र के अनुसार इसे ही सल्लेखना कहा जाता है, इसे श्वेतांबर साधना पध्दती में संथारा एवं दिगम्बर में सल्लेखना कहा जाता है।