हाइवे पर वृक्षो की कमी के कारण कम हो रही ऑक्सीजन की मात्रा, पर्यावरण सरंक्षण को लेकर न प्रशासन गंभीर और न जनप्रतिनिधियों ने दिखाई रुचि
राकेश बिकुन्दिया, @ मालवा खबर सुसनेर। क्या आपको पता है आज जिस हाइवे से आप गुजर है वह कितने पेड़ो के बलिदान के बाद बनाई गई है। हजारों वृक्षो की कटाई करने के बाद भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण दिल्ली के द्वारा उज्जैन से लेकर चंवली तक कुल 134 किलोमीटर की नवीन टू लेन सड़क का निर्माण संभव हो पाया है। जिसे उज्जैन-झालावाड राष्ट्रीय राजमार्ग 552 जी के नाम से जाना जाता है। इस सड़क निर्माण में बाधा बने हजारों पेड़ो को नेशनल हाइवे के निर्माण के दौरान काटा तो गया लेकिन एनएचएआई के द्वारा गाइडलाइन के अनुसार इनके स्थान पर दोगुने मात्रा में पेड़ नही लगाए गए। जबकि अनुबंध के अनुसार इस मार्ग के निर्माण के बाद पेड लगाए जाना थे। किन्तु ऐसा नहीं हुआ।
आज स्थिति यही है कि हम बड़ी शान से इस मार्ग से यात्रा तो कर रहे लेकिन इस मार्ग पर पर्याप्त मात्रा में हमे ऑक्सीजन देने वाले पेड़ ही कम हो गए है। यदि एनएचएआई काटे गए पेड़ो की जगह सड़क निर्माण के बाद नए पेड़ो को लगा देती तो ऑक्सीजन भरपूर मात्रा में मिल सकती थी। लेकिन न तो जिम्मेदारो ने पर्यावरण संरक्षण की और ध्यान दिया और न ही अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने वाले पक्ष-विपक्ष के नेताओ व जनप्रतिनिधियों ने इसको लेकर कोई रुचि दिखाई। इसलिए इस मार्ग पर जो पेड काटे गए थे उनका स्थान आज भी रिक्त ही पडा हुआ है।
710 पेड़ सुसनेर अनुविभाग में काटे गए
अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कार्यालय सुसनेर से प्राप्त जानकारी के अनुसार 710 पेड़ तो सुसनेर अनुभाग की सीमा क्षेत्र में ही एनएचएआई के द्वारा काटे गए है। इसके अलावा आगर, घटिया और घोसला के मिलाकर हजारों पेड़ो की बली देकर के उज्जैन झालावाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग 552 जी की टू लेन सड़क का निर्माण किया गया है। लेकिन इनके स्थान पर दोगुनी मात्रा में पेड़ो को लगाया नही गया।
पेड़ों को काटकर सड़क बनाने से पर्यावरण को कई तरह के नुकसान होते हैं
– पेड़ों को काटने से जल चक्र प्रभावित होता है।
– पेड़ों की कटाई से वनस्पति और जीव नष्ट होते हैं।
– पेड़ों की कटाई से कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है।
– पेड़ों की कटाई से पशु-पक्षियों का आवास नष्ट हो जाता है।
– पेड़ों की कटाई से बाढ़ और आग लगती है।
– पेड़ों की कटाई से लकड़ी या इमारती लकड़ी की आपूर्ति सीमित हो जाती है।
– पेड़ों की कटाई से मिट्टी सूख जाती है, जिससे फसल उगाना असंभव हो जाता है।
– पेड़ों की कटाई से मरुस्थलीकरण, मृदा अपरदन, कम फसलें, बाढ़, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
इनका कहना-
उज्जैन झालावाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में सुसनेर अनुविभाग के अंतर्गत 710 पेड़ो को काटा गया था जिसके स्थान पर दोगुनी मात्रा में पेड लगाए जाने थे। किन्तु सड़क बनने के बाद पेड कही दिखाई नही देेते। हमारे द्वारा एनएचएआई को पत्र भेजकर के पेड़ लगाए जाने की मांग की जाएगी। विजय सेनानी, तहसीलदार, सुसनेर।