प्राचीन समय में अच्छी वर्षा के लिए दी जाती थी पशु बली, समय के साथ बंद हो गई परम्परा
सुसनेर- राकेश बिकुन्दीया । नगर के वार्ड क्रमांक 6 स्थित चौसठ याेगिनी माता मंदिर में मां की प्रतिमा स्वयं भू है। यह प्रतिमा धरती मेसे प्रकट हुई थी। उसके बाद भक्तो ने यहां मंदिर का निर्माण कर दिया। आज यह मंदिर शक्ति की भक्ति का सबसे बडा केन्द्र बना हुआ है। मातारानी का यह मंदिर सुसनेर की स्थापना से भी पहले का है। मंदिर के पुजारी पण्डित पुरूषोत्तम बैरागी के अनुसार मां चोसठ योगिनी का यह मंदिर अतिप्राचीन है जो नगर की स्थापना से पहले का है। यहां पूजा करते- करते उनकी तीन पीढीयां हो चुकी है। मंदिर में विराजित प्रतिमा को कही से लाया नही गया है। बल्की यहां मातारानी स्वयं धरती में से प्रकट हुई थी। उसके बाद श्रृद्धालुओ ने यहा मंदिर बना दिया। नगर में कुछ साल पहले जब कभी भी जलसंकट होता या समय पर बारिश नही होती थी तब श्रृद्धालुओ के द्वारा अच्छी बारिश होने की कामना के साथ पशु बली दी जाती थी। तथा बली का रक्त बारिश के पानी से ही धूलता था। बली देने के 24 घंटे के अंदर बारिश हो जाया करती थी। इसके अतिरिक्त मंदिर में श्रृद्धालुओ की मन्नते भी पुरी हुई है। समय के साथ बली देने की परम्परा समाप्त हो गई।
वट वृक्ष के नीचे विराजित है माता
मेला ग्राउण्ड रोड पर स्थित इस मंदिर परिसर में एक वट वृक्ष भी है। जिसके नीचे माता विराजमान है। जिस वृक्ष की पूजा कर महीलाए मन्नते मांगती है। नवरात्र के चलते प्रतिदिन सुबह 6 बजे व रात्रि में साढे 8 बजे महाआरती की जा रही है। जिसमें बडी संख्या में भक्त उपस्थित हो रहे है।
नगर की स्थापना से पहले का है मंदिर
मंदिर के पुजारी पुरूषोत्तम बैरागी के अनुसार यह मंदिर नगर की स्थापना से पहले का है। सुसनेर का प्राचीन नाम सुवानगर था। उस समय सुवानगर ग्राम सादलपुर के समीप स्थित था। बाद में प्राचीन समय में किसी राजा ने एक किला बनाकर नगर को नए सिरे से बसाया था। मंदिर की स्थापना के बाद सुवानगर का नाम सुसनेर पड गया।