चर्चा चुनाव की…..
राकेश बिकुन्दीया सुसनेर। विधानसभा को भाजपा का गढ भले ही माना जाता रहा हो, किन्तु इस बार अपने ही गढ़ में भाजपा की अग्निपरीक्षा होना तय है, क्यों कि भाजपा को अपने ही बागी संतोष जोशी का सामना तो करना ही है साथ ही सत्ता विरोधी लहर को भी झेलकर अग्निपरीक्षा देनी है। और इस अग्निपरीक्षा को पास करने के लिए भाजपा ने सुभाषघई की चर्चित फिल्म राम-लखन जिसमें की राम की पहचान अलग है और लखन की पहचान अलग है की तर्ज पर अपने सबसे अनुभवी राम-लखन की जोडी को चुनावी मैदान में उतारा है। राम तो पूरी विधानसभा क्षेत्र में अपनी कर्मठता, सजगता और पार्टी के प्रति निष्ठा के लिए जाने जाते है तो वही लखन चुनावी गणित में माहिर है। तथा जोड-तोड की राजनीति के भी पुराने खिलाडी है। इस जोडी के पास 5 से भी अधिक विधानसभा चुनावो के संचालन और जोड-तोड का अनुभव है। राम-लखन की यह जोडी जिला पंचायत के चुनाव में भी भाजपा संगठन की उम्मीदों पर खरी उतरी थी। इस जोडी के पास संगठन का लम्बा अनुभव भी है। कुल मिलाकर भाजपा की अग्निपरीक्षा के साथ-साथ यह विधानसभा चुनाव इस राम-लखन की जोडी के लिए भी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा। इस जोडी का तोड ढुंढने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी पूरी कोशिश कर रहे है।
निजी एजेन्सियों के भरोसे सोशल मीडिया केम्पेन चला रहे प्रत्याशी
विधानसभा चुनाव के लिए 2 उम्मीदवार अपनी सोशल मीडिया केम्पेन के लिए निजी एजेन्सियों का सहारा ले रहे है। तो भाजपा उम्मीदवार स्थानीय स्तर पर ही सोशल मीडिया मैनेज कर रहे है। कांग्रेस के उम्मीदवार भैरोसिंह परिहार तथा निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे जितेन्द्र पाटीदार निजी एजेन्सी की सेवाएं लेकर अपना केम्पेन चला रहे है। तो वही भाजपा उम्मीदवार राणा विक्रमसिंह अपने समर्थको के सहारे ही यह काम कर रहे है। एक और निर्दलीय उम्मीदवार संतोष जोशी भी आगर जिलें के एक मीडिया संस्थान के जरीए सोशल मीडिया पर अपना चुनावी अभियान चला रहे है। इन सबमें भाजपा उम्मीदवार का ही सोशल मीडिया केम्पेन सही तरीके से चल रहा है। बाकी अन्य स्थानीय मुद्दो की अनदेखी कर रहे है। जिसके चलते उनका सोशल मीडिया केम्पेन ज्यादा प्रभाव नहीं छोड पा रहा है।
हम तो डूबे सनम, तुम्हे भी ले डुबेंगे
इस विधानसभा चुनाव में क्षेत्र के कुछ नेता हम तो डूबे सनम, तूम्है भी ले डूबेंगे कि तर्ज पर कार्य कर रहे है। इनमें से कुछ नेता तो टिकट के दावेदार भी थे। अब भविष्य में शायद ये टिकट के दावेदार भी न हो, किन्तु टिकट नहीं मिला तो कुछ समय तो इन्होने अपनी नाराजगी भी दिखाई, किन्तु अब खामोशी अख्तियार कर ली है। जबकि कुछ नेता तो अंदरूनी तौर पर कई दलों के सम्पर्क में है। और जहां से भी हो, जैसे भी हो अपनी व्यवस्थाएं जुटाने का प्रयास कर रहे है।
कल तक जो बैगाने से थे, वे अब अपने से लगने लगे है
विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस में प्रत्याशीयों की घोषणा के बाद दोनो दलों में जिस तरीकें के विरोध के स्वर उठे थे समय बीतने के साथ-साथ कमजोर पडने लगे है। जो कार्यकर्ता या नेता कलतक बैगानो सा व्यवहार किया करते थे। वे अब उम्मीदवारों को अपने से लगने लगे है। इसके बाद भी भाजपा और कांग्रेस में विरोध पूरी तरीकें से समाप्त नहीं हुआ है। दोनो दलो के प्रत्याशीयों को बैगानो का अपना सा व्यवहार चुनावी रण में कितनी सफलता दिलाएगा इसका इंतजार है।