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विधानसभा चुनाव में हजारो किसान बनते हैं चेंजमेकर, दोनों बड़े दलों के नेताओं को इन्हें ही साधने में छूट रहा पसीना
मालवा ख़बर @ राकेश बिकुन्दीया, सुसनेर।
युवा, महिलाएं, व्यापारी, शिक्षित वर्ग और समाज के बाद बड़े वोट बैंक के तौर पर किसानों को माना जाता है। ये चुनावों में चेंजमेकर की भूमिका निभाते हैं। ये ही सरकारों का भाग्य निर्धारित करते हैं, लेकिन इस बार के विस चुनाव में किसानों की जमकर नाराजगी है। वे दोनों ही दलों से नाराज हैं और आधी-अधूरी घोषणाओं से परेशान। किसान भी कांग्रेस से पूछ रहे हैं कि कर्जमाफी के वादे का क्या हुआ? वे भाजपा से पूछ रहे हैं कि बीमा राशि उन्हें अब तक क्यों नहीं मिली। इसी कारण राजनीतिक दलों के सामने किसानों को साध पाना सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। दरअसल सुसनेर विधानसभा क्षेत्र में हजारो किसान है उनकी शिकायत सिस्टम के साथ ही राजनीतिक दल, सराकर से यह है कि न उन्हें समय पर मुआवजा मिलता न ही बीमा राशि। घोषणाओं में जो वादे किए जाते हैं वे भी पूरे नहीं होते। कांग्रेस को लेकर उनकी नाराजगी है कि 10 दिन में माफ किया जाने वाला कर्ज आज तक माफ नहीं किया। 15 माह की सरकार ने कुछ ही किसानों के कर्ज माफ किए वे भी आधे-अधूरे। वहीं, भाजपा से इस बार नहीं दी गई बीमा राशि के कारण नाराजगी है। सीएम ने घोषणा की थी कि सुसनेर क्षेत्र के 15 हजार 569 किसानों को लाखो रुपए बीमा राशि के दिए जाएंगे। यह राशि पिछली बार की रबी-खरीफ की फसलों के लिए दी जाना हैं, लेकिन वह राशि भी नहीं आई। कुछ ऐक किसानो के पास पहुंची लेकिन वे भी संतुष्ट नहीं है। क्यों कि जिनके यहां आई उन्हें भी आधी-अधूरी मिली।
सरकारो ने वादें पूरे नहीं किये
अधिकांश किसानों का कहना है की सरकारों ने जो वादे किए वे पूरे नहीं किए हैं। आधी-अधूरी बात सब करते हैं। फसलों के सही दाम कोई सरकार नहीं दिलवा पाई। हमारी फसल मार्केट में पहुंचते ही उसकी डिमांड कम हो जाती है और भाव गिर जाते हैं, यह सब मोनोपॉली के तहत होता है। कर्ज माफ करने की बात करने वाले कर्ज माफ नहीं कर पाए और अभी-अभी जारी हुई बीमा राशि भी नहीं मिल पाई। ऐसे में किसानों को जो नुकसान होना था वह तो हो गया, लेकिन अब जरूरत के समय किसी ने ध्यान नहीं दिया, फिर कैसे मैनेज करें।
नाराजगी के ये कारण भी अहम…
एमएसपी तय नहीं : समर्थन मूल्य शासन की ओर से सिर्फ गेहूं का ही तय किया गया है। कुछ और चुनिंदा जिंस की दरें हुई हैं लेकिन धनिया, चना सहित अन्य उपज की दरें निर्धारित नहीं की गईं हैं। जिले में प्याज, लहसुन, संतरे इत्यादि भी बड़ी मात्रा में पैदा किए जाते हैं, लेकिन उनका भी एमएसपी तय नहीं है।
फसलों के सही दाम नहीं मिलना: हर बार सीजन के दौरान उपज के भाव गड़बड़ा जाते हैं, जिससे किसानों में ज्यादा नारागजी हमेशा से रही है। सोयाबीन के समय में अचानक से भाग एक से दो हजार रुपए क्विंटल कम हो जाते हैं। साथ ही धनिया, चने, सरसों इत्यादि के भाव की भी यही स्थिति है, जिससे किसान हताश हैं।
एक जिला एक उत्पाद में भी पीछे : संतरे को एक जिला एक उत्पाद का हिस्सा मप्र शासन ने बनाया है लेकिन इसका काम काफी धीमा है, अभी तक प्रक्रिया ही शुरू नहीं हो पाई है। फूड प्रोसेसिंग यूनिट अभी तक तैयार नहीं है, जिसका सीधा नुकसान किसान वर्ग को ही हो रहा है।