इस बार क्या कायम रहेगा मिथक, या बदल जाएगा इतिहास
मालवा खबर @ राकेश बिकुन्दीया, सुसनेर। विधानसभा चुनावों के दौरान पिछले 6 चुनावों से सुसनेर विधानसभा के साथ एक मिथक जुडा हुआ है। इन छह ही चुनावों में जिस पार्टी का उम्मीदवार विधायक बना उसी पार्टी की सरकार प्रदेश में बनी है। पिछले 33 सालो से यही मिथक कायम है। और इस बार ये कायम रहेगा या नहीं इसका फैसला 3 दिसम्बर को मतगणना के बाद हो जाएगा। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बागी बनकर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राणा विक्रमसिंह ने जीत हासिल की और कांग्रेस को समर्थन दिया तो प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी जरूर लेकिन कुछ ही महिनो के बाद ही गिर गई और उसके बाद भाजपा सरकार में आ गई। तो निर्दलीय विधायक ने भाजपा को ही समर्थन देकर बाद में भाजपा ज्वाईन कर ली। अब इस बार के चुनाव की मतगणना कल होना है। पिछले 6 चुनाव से चला आ रहा मिथक क्या इस बार भी कायम रहेगा या फिर इतिहास बदल जाएगा। इस का इंतजार सभी को है। वर्ष 1990 में हुएं विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर बद्रीलाल सोनी वियजी हुएं थे। तब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी और तभी से सुसनेर विधानसभा में इस मिथक की शुरूआत हुई। वर्ष 1993 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार वल्लभभाई अम्बावतिया ने चुनाव जीता था। तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी। उसके बाद 1998 के चुनाव में कांग्रेस ने वल्लभ अम्बावतिया को पुन: उम्मीदवार बनाया तो वे विजयी हुएं तब भी प्रदेश में पुन: कांग्रेस की सरकार बनी। वर्ष 2003 के चुनाव में भाजपा ने नलखेडा क्षेत्र के नेता फूलचंद वेदिया को उम्मीदवार बनाया जिन्होनें जीत हासिल की तब भी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। वर्ष 2008 में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर संतोष जोशी ने जीत हासिल की। तथा 2013 के चुनाव में भाजपा के मुरलीधर पाटीदार ने जीत हासिल की तो इन दोनों के समय भी भाजपा की सरकार प्रदेश में बनी। इस तरह से पिछले 6 विधानसभा चुनाव से जिस पार्टी का सुसनेर विधायक बना उसी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनी। और यह मिथक निरन्तर चला आ रहा है। 2018 के चुनाव में निर्दलीय विजयी हुए तो प्रदेश में कुछ ही महिने कांग्रेस और बाकी के शेष समय में भाजपा सरकार में रही। किन्तु इस बार के चुनाव में यह मिथक कायम रह पाएगा या नहीं। यह कल रविवार की शाम तक पता चलेगा।
6 चुनाव से भाजपा ने जब भी नया चेहरा मैदान में उतारा जीत मिली, रिपीट किया तो हार का सामना
1990 के चुनाव में भाजपा ने नए चेहरे के तोर पर बद्रीलाल सोनी को मैदान में उतारा था। तभी से अब तक के चुनाव में भाजपा ने जब भी नया चेहरा मैदान में उतारा तो भाजपा को जीत हासिल हुई है। और जब भी उम्मीदवार रिपीट किया तो भाजपा को हार का सामना करना पडा। 1990 के चुनाव में विजयी हुएं बद्रीलाल सोनी को 1993 के चुनाव में पुन: रिपीट किया तो कांग्रेस उम्मीदवार वल्लभ अम्बावतिया ने जीत हासिल की। इसके बाद 1998 के चुनाव में भाजपा ने पुन: बद्रीलाल सोनी को उम्मीदवार बनाया। किन्तु वे चुनाव हार गए। उसके बाद 2003 तथा 2008 और 2013 के चुनाव में भाजपा ने हर बार नया चेहरा मैदान में उतारा तो हर बार भाजपा को जीत हासिल हुई। वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा ने 2013 में विजयी हुएं उम्मीदवार मुरलीधर पाटीदार को पुन: मैदान में उतारा है। जिसकी हार-जीत का फैसला आज हो जाएगा। किन्तु इस बार 2018 में निर्दलीय चुनाव जीतने वाले राणा विक्रमसिंह को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा है। अब देखना यह है की राणा जीत हासिल करते या फिर कांग्रेस के भेरोसिंह परिहार बापू बाजी मारते है। मुख्य मुकाबला इन्ही भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशीयो के बीच है।