25 अगस्त 1998 में तत्कालीन सांसद थावरचंद गेहलोत, वसुंधरा राजे सिंधिया के प्रयास से उज्जैन-आगर-रामगंज मंडी रेल लाइन का हुआ था द्वितीय चरण का सर्वे
मालवा खबर@ राकेश बिकुन्दिया, सुसनेर।
हमार क्षेत्र लम्बे समय से रेल लाईन से अछुता है, इसको लेकर सर्वे तो दो बार हो हुएं लेकिन वे धरातल पर नहीं उतर पाए। हालाकि अब भी समाजसेवियों के द्वारा पोस्टकार्ड अभियान चलाया जा रहा है इससे पहले भी कई आंदोलन रेल की मांग को लेकर हो चुके है, लेकिन अभी तक सफलता हासिल नही हुई। इस बीच हमारे हाथ एक नक्क्षा लगा जो वर्ष 1998 में हुए दूसरे चरण के सर्वे का है। आईये हम आपको इस नक्शे के जरीए बताते है की कहा-कहां से रेल लाई गुजरने वाली थी। नक्शे के अनुसार रामजगमंडी से लेकर व्याहा झालावाड, सुसनेर, आगर, घोसला, घट्टीया से होते हुएं उज्जैन तक ट्रेन गुजरने वाली थी। और इसी लाईन के अनुसार रेल की पटरी भी बिछाई जाना थी। 25 अगस्त 1998 में तत्कालीन सांसद थावरचंद गेहलोत, वसुंधरा राजे सिंधिया के प्रयास से उज्जैन-आगर-रामगंज मंडी रेल लाइन का द्वितीय चरण के सर्वे का शुभारंभ तत्कालीन रेल मंत्री नीतिश कुमार द्वारा उज्जैन रेलवे स्टेशन पर किया गया था। इसका नक्क्षा भी उस समय जारी किया गया था।
इनके पास मिला नक्शा
इस नक्शे को संभालकर रखा सुसनेर के वरीष्ठ समाजसेवी गंगाराम टेलर ने। वे इस नक्शे को हमे उपलब्ध कराते हुएं बताते है की जब यह सर्वे दूसरी बार हुआ था तब क्षेत्रवासियों के मन में एक आस जगी थी की वे भी अब रेल में सफर कर सकेंगे साथ ही रामगजमंडी से व्याहा झालावाड, सुसनेर, आगर, घोसला, घट्टीया से होते हुएं उज्जैन तक रेल लाइन शुरू होने से क्षेत्र का विकास भी होगा और रोजगार के साधन उपलब्ध होने के साथ-साथ संसाधन बढने से क्षेत्र भी तरीक्की और अग्रसर होगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ और सर्वे धरातल पर उतर ही नही सका। अब एक बार फिर से लोकसभा चुनाव से पूर्व ही समाजसेवियों के साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने भी गत दिनो वीडियो जारी करते हुएं बताया है की रेल लाइन की सौगात के लिए केन्द्र सरकार से मांग की है जल्द ही यह मांग पूरी होगी।
सर्वे को 25 वर्ष हुएं, लेकिन प्रयासो को सफलता नहीं मिली
आश्चर्य की बात तो यह है कि बीते दूसरे चरण को सर्वे को भी 25 वर्ष बीत चुके है इन 25 सालों में कई सांसद आए और गए, लेकिन वर्तमान समय तक सभी उज्जैन-झालावाड़ रेल लाइन को लेकर हमेशा कोई न कोई वक्तव्य आए दिन देते रहे हैं, लेकिन आगे की कार्रवाई आज तक नहीं हुई।
नेरोगेज बन गई इतिहास
ग्वालियर स्टेट द्वारा 15 मार्च 1932 को उज्जैन से आगर तक के लिए नेरोगेज रेल सुविधा प्रारंभ की गई थी। यह इतनी इतनी धीमी चलती थी कि कई लोग दौड़कर लगाकर ही चलती ट्रेन में सवार हो जाते थे और चलती ट्रेन से ही उतर जाते थे। इसमें एक भाप का इंजन और सात डिब्बे होते थे। उज्जैन से आगर तक पहुंचने में 4 घंटे से अधिक समय लगता था। वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान इस रेलवे लाइन को उखाड़ दिया गया। आपातकाल के दौरान देशभर में 33 नेरोगेज रेल लाइन बंद की गई। बाद में सरकार की दूसरी नीति के तहत 32 रेल पुन: प्रारंभ कर दी, किंतु उज्जैन से आगर रेल लाइन इतिहास बन कर रह गई।
रेल लाइन मिलने का लाभ
यदि यह लाइन बनती है तो न केवल आगर-सुसनेर-झालावाड़ के लिए इंदौर तक सीधा रेल मार्ग उपलब्ध हो जाएगा, बल्कि इंदौर-उज्जैन की नई दिल्ली से दूरी भी कम हो जाएगी तथा भविष्य में राजस्थान से मध्यप्रदेश की यात्रा करने वाले यात्रियों के नया वेकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो सकेगा। साथ ही विकास कार्यो को भी पंख लग सकेंगे।