देवी अहिल्याबाई ने की थी मंदिर की स्थापना, हर वर्ष निकलती है शाही सवारी
राकेश बिकुन्दिया, सुसनेर। इन्दौर रियासत की महारानी देवी अहिल्याबाई ने तहसील में कई जगहो पर शिव मंदिरो का निर्माण कराया था। वर्तमान में ये सभी मंदिर शासन के आधिपत्य में होकर धर्मस्व विभाग के अधीन है। इन्ही में से एक नगर के मेला ग्राउण्ड क्षेत्र में स्थित नीलकण्ठेश्वर महादेव मंदिर भी है। इस मंदिर के आसपास कई और शिवालय भी है। इस कारण से इसे पुराने समय में शिव का बाग भी कहा जाता था।
किन्तु बाद में नगर परिषद द्वारा इस स्थान पर वार्षिक रामनवमीं मेले की शुरूआत कर दी गई। तब से इसे इस जगह का नाम मेला ग्राउण्ड पड गया। कंठाल नदी के किनारे पश्चिम दिशा की ओर बसा है। इस मंदिर से प्रतिवर्ष भादौ के पहले साेमवार पर शिव भक्त मंडल के तत्वधान में नीलकंठेश्वर महादेव की शाही सवारी भी निकाली जाती है। इस दिन भगवान अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते है।
वर्तमान में धर्मस्व विभाग के अधीन यह मंदिर प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है। श्रावण मास के अवसर पर हमारे द्वारा हमारे शिवालय थीम के माध्यम से हम आपको सुसनेर क्षेत्र के ऐसे प्राचीन शिवालयो से अवगत कराएंगे। जो न सिर्फ हमारी धार्मिक आस्था के केन्द्र बिंदु है बल्की हमारे प्राचीनतम इतिहास को भी सहेजे हुएं है।
जनसहयोग से मंदिर में हो रहे निर्माण कार्य
बीते वर्ष से युवाओ के द्वारा सावन माह में प्रतिदिन रूद्राभिषेक किया गया जिसमे कुछ राशि शेष बची जिससे मंदिर के गर्भगृह में टाइल्स व फर्श लगवाया गया। उसके बाद मंदिर के जीर्णोद्धार को लेकर युवा भक्तो द्वारा पहल शुरू की गई। तो जनसहयोग से राशि एकत्रित कर वर्तमान में मंदिर परिसर में पूरे फर्श पर सिढियों पर भी टाइल्स लगवाई गई है।
यही से ओंकारेश्वर के लिए निकलती है कावड यात्रा
मेला ग्राउण्ड क्षेत्र यानी के शिव के बाग में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के अलावा ओंकारेश्वर महादेव मंदिर, जयेश्वर महादेव मंदिर भी है। बोलबम कावड यात्रा संघ के द्वारा विगत कइर वर्षो से कावड यात्रा इसी नीलकंठेश्वर मंदिर से निकाली जाती आ रही है। कावड यात्री मंदिर में महारूद्राभिषेक कर कंठाल नदी के जल से 300 किलोमीटर पैदल चलकर ओंकारेश्वर महादेव का अभिषेक करते है।
मंदिर की जमीन पर कृषि उपज मण्डी का कब्जा
नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर कई जगह पर जमीने भी दर्ज है। इनमें से इन्दौर कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग पर मंदिर के नाम की करीब 10 बीघा भुमि कृषि उपज मण्डी के कब्जे में है। इस बात की जानकारी प्रशासन के जिम्मैदारो को भी है। किन्तु मंदिर की पुजारन विधवा महीला के होने के कारण मंदिर की जमीन को कृषि उपज मण्डी से मुक्त कराने की कोई ठोस पहल आज तक नही हो पाई ह