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December 12, 2024 4:38 pm

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सुसनेर: पंचतत्व में विलीन हुएं पूर्वाचार्य मुनिश्री दर्शन सागर जी महाराज

जैन मुनि की अन्तिम यात्रा में उमडा जैन सैलाब, हजारों भक्तों ने मुनिश्री को दी नम ऑखों से विदाई

राकेश बिकुन्दिया, सुसनेर। दिगम्बर जैन मुनि परंपरा के पूर्व आचार्य दर्शनसागर जी महाराज ने रविवार 01 दिसंबर को शाम 5 बजकर 5 मिनिट पर अपना देह त्याग दिया था। सोमवार को सुसनेर में स्थित त्रिमुर्ति जैन तीर्थ में उनके अंतिम संस्कार से पहले पूरे नगर में नगरवासियों ने मृत्यु महोत्सव मनाया। मंदिर परिसर से जैसे ही मुनिराज की डोल भक्तों ने कंधों पर उठाई, पूरा मंदिर परिसर जयकारों से गूंज उठा। मानो जैसे पूरा शहर अन्तिम विदाई देने एक ही स्थान पर पहुंच गया हो। इस दौरान जैन समुदाय के लोगों ने बोलियां भी लगाईं। विधि-विधान द्वारा देह संस्कार से पहले उन्हें डोली में बैठाकर नगर में अंतिम यात्रा पर ले जाया गया। डोल के आगे कंमडल की धारा संदीप कुमार राकेश कुमार दिल्ली का परिवार मुनिश्री के कंमडल से जलधारा से धरा को पवित्र करते हुवें चल रहा था। इस दौरान उन्हें लकड़ी के एक तख्ते पर प्रार्थना की मुद्रा में बैठाया हुआ था।

 

 

अंतिम यात्रा में हजारों की संख्या में शहर सहित आसपास के कई शहरों के सकल जैन समाज के श्रावक-श्राविकाएं एवं विभिन्न समाज के गणमान्यजन शामिल हुए। त्रिमुर्ति मंदिर परिसर में विधी विधान से चंदन की लकड़ियाें और नारियल से अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार के समय धर्मजनो ने उनकी चिता की परिक्रमा लगाकर अंतिम विदाई दी। मुनिश्री के ग्रहस्थ जीवन के भाई व परिवारजन भी इस दोरान मौजूद रहे। अन्तिम यात्रा के दौरान नगरवासियों ने प्रतिष्ठान बंद रखकर अपने गुरू को भावपूर्ण विदाई दी। दर्शन सागर दिगंबर जैन ज्ञान मंदिर स्कूल सहित अधिकांश निजी स्कूलों ने सोमवार को अवकाश रखा।

एक नजर में पूर्व आचार्य दर्शन सागरजी महाराज

मुनि श्री दर्शन सागर पिछले कई समय से अस्वस्थ चल रहे थे। 9 अप्रैल 1972 को िदल्ली के समीप अतिशय क्षेत्र तिजारा में दर्शन सागरजी ने छुल्लक दीक्षा ली, उसके बाद 13 मार्च 1973 में राजस्थान के बुंदी में आचार्य श्री निर्मल सागरजी महाराज से मुनि दीक्षा ली। 13 अप्रैल 1973 को गणधर पद संगोद राजस्थान में मिला। उसके बाद वे सुसनेर पहुंचे फिर 11 फरवरी 1983 में उत्तरप्रदेश के आगरा में आचार्य पद की पद्वी आचार्य श्री सुमतसागरजी महाराज ने प्रदान की। दर्शन सागरजी जब 1973 में जब मुनि थे तब ही सुसनेर पहुंच गए थे। तब से लेकर आज तक उन्होने अपनी संत साधना सुसनेर में ही की।

ऐसे हुआ अंतिम संस्कार

अन्तिम संस्कार के लिए यात्रा त्रिमुर्ति मंदिर पहुचने पर चंद्रकला जैन इंदौर एवं परिवार वाले ने पूजन की बोली लेकर महाराज जी की पूजा कर अर्घ चढाऐं एवं हवन शांति की गई। इसके बाद महाराज का जल से अभिषेक किया गया। पूजन के बाद शांतिपाठ एवं अन्य धार्मिक क्रियाऐं पंडित शांतिलाल जैन आगर,पंडित नितिन झांझरी इंदौर, पंडित मुकेश जैन सुसनेर के द्वारा संपन करवाई गई। महाराज को मुखाग्नि देने की बोली लेने वाले संदीप कुमार भेरूलाल जैन सुसनेर एवं राकेश कुमार नेमीचंद जैन नईदिल्ली परिवार के द्वारा मंत्रोचार के साथ अन्तिम संस्कार की क्रियाऐं की।

राकेश जैन दिल्ली कराएंगे अन्तिम संस्कार स्थल का संपूर्ण निर्माण कार्य

इसके बाद अंतिम संस्कार पूरे विधि विधान से किया गया। उनकी चिता को सजाया और पहले जैन मुनियों ने चिता की परिक्रमा लगाई और बाद में समाजजन चिता के चारों ओर घूमीं और मुनि को अंतिम विदाई दी। नगर पुरोहित नितिन झांझरी इंदौर ने बताया कि मुनि अपनी साधना पूर्ण करके स्व आत्मा में लीन होकर अपने धाम को जाते है। अन्तिम क्रिया में मुनिश्री की संपूर्ण क्रिया उल्टे क्रम में की जाती है।

लगाई गई लाखों की बोलिया

मुनिश्री की अन्तिम क्रियाए के दौरान ध्वज स्थापना रमेशचंद जैन अजमेर, डोल पर कलश स्थापना लीलाबाई कानड, कैलाशचंद जैन जैन इलेक्ट्रिक नलखेंडा, कैलाश जैन खाजान्ची, किशोर कुमार इंदौर, डोल को कंधा फूलचंद जैन, प्रेमचंद जैन, प्रकाशचंद जैन बडाजीन परिवार, शेलेंद्र कुमार मोडी, पप्पू भैया अजमेर, राजमल जैन खूपवाला, मुख्य खूटी अशोक जैन चायवाले उज्जैन, पप्पू भैया अजमेर, शेलू जैन उपापान, दिनेश जैन ननोरा वाले, मुकेश सांवला, मुख्य दीप प्रज्वलन राजेश कुमार कैलाश जैन जैन इलेक्ट्रिक, प्रथम अभिषेक सुरभि शाह इंदौर, विनोद कुमार जैन नलखेंडा, महावीर जैन सालरिया, बलवंत ठाकुर सुसनेर, आरती उॅकारलाल जैन सेवन स्टार परिवार नलखेडा के द्वारा की गई।

वो 3 दिन का समय

मुनिश्री की समाधी से पूर्व 29 नवंबर को मुनिश्री दर्शन सागर जी महाराज सुसनेर पहुंचे थें। उनकी अस्वस्थता की खबर की बाद से लगातार मंदिर में समाजजन पहुंच रहे थें। इन तीन दिनों में सुसनेर नगर के साथ आसपास के सैकडो की संख्या में समाजजनों ने पहुंचकर मुनिश्री का नमोकार व समाधिमरण सुनाया। मुनि दर्शन सागर जी महाराज ने अपनी मुनि अवस्था 47 वर्षो में से 25 चातुर्मास के साथ अधिकांश समय सुसनेर में बिताया था, यहीं वजह थी कि जैन समाज के साथ सर्वसमाज उन्हें अपना गुरू मानता था। यही वजह है कि समाधि के बाद नगरवासियों ने मृत्यु महोत्सव में शामिल हो अन्तिम बिदाई भी दी। मुनिश्री ने नगर में स्थित श्री दिगंबर जैन बडा मंदिर जी,श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर का जीर्णाद्वार करवाया तो देश में सबसे अधिक जैन प्रतिमाओं वाला त्रिमुर्ति जैन मंदिर भी बनाया। देश में पहली बार सुसनेर में 365 दिनों तक अखंड भक्तामर पाठ जैसी कई धामिक क्रियाएं मुनिश्री ने करवाई है।

कार्यक्रम की झलकिया

मुनिश्री की अन्तिम यात्रा के दौरान नगर वासी उन्हे प्रमाण कर अन्तिम बिदाई दे रहे थे। मुनिश्री की अन्तिम यात्रा तक नगर पूरी तरह से बंद रहा।पुलिस प्रशासन ने ट्राफिक व्यवस्था के साथ मांस की दुकाने पर बंद करवाई।मंदिर का हर कोना आम नागरिको और समाजजनो ने भरा हुआ था।मुनि श्री के नाम से ही संचालित हो रहा है स्कूल व ट्रस्ट

मुनि श्री दर्शन सागरजी महाराज ने यहां के जैन समाज को शिक्षा व अन्य कारोबार से लेकर तमाम क्षेत्रो में उन्नति दिलाई। सुसनेर में ही जैन समाज के द्वारा आचार्य श्री दर्शन सागर महाराज ज्ञान मंदिर स्कूल के नाम से ही प्राइवेट स्कूल व ट्रस्ट भी संचालित है जो कि महाराज की प्रेरणा से समाजजनो के द्वारा संचालित किया जा रहा है।

यह है दर्शनसागरम तीर्थ

उज्जैन झालवाड हाइवे पर स्थित त्रिमुर्ति दिगंबर जैन जिसे दर्शन सागरम तीर्थ के रूप में जाना जाता है इसका निर्माण मुनिश्री 108 दर्शन सागर महाराज ने करवाया था। मुनि श्री ने इन मंदिर 1983 में मुम्बई के पोदनपूर में स्थित मंदिर की तर्ज पर त्रिमूर्ति मंदिर का निर्माण शुरू करवाया। मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली सहित कई अन्य जगहों के जैन समाजजनो के सहयोग से मंदिर का कार्य धीरे-धीरे चलता रहा। समय-समय पर पंचकल्याणक महोत्सव के जरीए इस मंदिर में भगवान की प्रतिमाओं की स्थापना भी होती रही। अभी तक मंदिर में छोटी-बडी सभी प्रकार की विभिन्न धातुओं से निर्मित 1600 से भी अधिक प्रतिमाओं की स्थापना की जा चुकी है। मंदिर 4 बीघा जमीन में बनवाया था। इस मंदिर में दूर-दूर से जैन धर्म के लोग आते हैं। त्रिमूर्ति तीर्थ क्षेत्र में सम्मेदशिखरजी की रचना, केलाश पर्वत की रचना, सहस्त्रकूट चेत्यालय, मानस्तम्भ, पंचबालयति मंदिर, नंदीश्वर द्वीप की रचना के अलावा 24 तीर्थंकरो की खडगासन व पदमासन प्रतिमाएं व हीरा, पन्ना व स्फटीक मणी व रत्नो व अष्टधातु की प्रतिमाएं मोजूद है।

malwakhabar
Author: malwakhabar

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